कीमती वस्तु
विजयनगर पर राजा कृष्णदेव राय शासन करते थे । उनके दरबार में तेनालीराम एक विदूषक था । तेनालीराम न सिर्फ राजा का मनोरंजन करता था , बल्कि वह राज – काज के कार्यों में उनकी सहायता भी करता था ।
एक बार राजा कृष्णदेव राय से मिलने दरबार में एक विदेशी व्यक्ति आया । उसने राजा का अभिवादन किया और कहा- महाराज! मैंने आपके राज्य की बड़ी प्रशंसा सुनी है। आपका न्याय और उदार व्यक्तित्व तो जगत प्रसिद्ध है।
मैंने यह भी सुना है कि आपके दरबार में बहुत ही बुद्धिमान एवं चतुर मंत्री हैं। इसलिए मैं यहाँ चला आया। मैं आपके मंत्रियों की बुद्धिमानी को परखना चाहता हूँ। मैं आपके मंत्रियों के समक्ष एक प्रश्न रखना चाहता हूँ।
राजा कृष्णदेव राय ने कहा- हे विदेशी यात्री! आपका हमारे राज्य में स्वागत है। आप मेरे मंत्रियों से जो भी प्रश्न पूछना चाहते हैं, पूछ सकते हैं। मुझे आशा है कि मेरे मंत्री आपको निराश नहीं करेंगे।
विदेशी पर्यटक बोला- महाराज! मेरा प्रश्न है कि आपके राज्य में सबसे कीमती वस्तु क्या है ? जो कोई भी मेरे इस प्रश्न का सर्वोत्तम जवाब देगा, उसे मैं एक सुंदर व बेशकीमती हीरे का हार भेंट करूंगा।
विदेशी पर्यटक का प्रश्न सुनकर राजा अपने मंत्रियों की तरफ देखने लगे। राजा की आज्ञा समझकर एक मंत्री उठा और बोला- हमारे राज्य की सबसे कीमती वस्तु ‘शाही खजाना’ है । इसी तरह एक – एक करके कई मंत्री उठे। किसी ने राजा के सिंहासन को कीमती बताया तो किसी ने राजमहल को , किसी ने राजमुकुट को तो किसी ने राजा को पदवी को।
मंत्रियों का जवाब सुनकर विदेशी पर्यटक संतुष्ट नहीं हुआ। तब राजा ने तेनालीराम से कहा- तेनाली! तुमने विदेशी पर्यटक के प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया। मैं चाहता हूँ कि तुम विदेशी पर्यटक के प्रश्न का उत्तर दो।
तब तेनालीराम विदेशी पर्यटक की ओर मुड़कर बोला- हे महानुभाव! मुझे लगता है कि हमारे राज्य को सबसे कोमती वस्तु आजादी है । हमारे राज्य में कोई किसी का गुलाम नहीं है। यहाँ पर सभी व्यक्ति मुक्त हैं। यहाँ पर सभी आजादीपूर्वक खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। विदेशी मेहमान बोला- ठीक है तेनालीराम! मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ, परंतु तुम्हें यह बात साबित भी करनी होगी। क्या तुम इसे साबित कर सकते हो?
तेनालीराम ने मुस्कराते हुए कहा- हाँ , क्यों नहीं! बस मुझे कुछ दिनों की मोहलत दीजिए। राजा ने कहा- हे विदेशी यात्री! तब तक आप हमारे विशिष्ट अतिथि हैं। तेनालीराम आपकी व्यवस्था कर देगा ।
तेनाली रामा ने उस विदेशी पर्यटक को शाही मेहमानखाने ठहरा दिया। उसके खाने लगा दिए। इसके साथ नालीराम ने उस विदेशी होने की उचित व्यवस्था कर दी। उसकी सेवा में कई नौकर मनोरंजन के लिए नाच–गाने का भी पूरा प्रबंध कर दिया। कुल मिलाकर विदेशी मेहमान को सभी सुख–सुविधाएँ दे दी गई।
कीमती वस्तु
पहले दो दिन तो विदेशी पर्यटक ने इन सुख–सुविधाओं का खूब आनंद लिया, परंतु तीसरे दिन उसे बाहर घूमने को इच्छा हुई और वह शाही मेहमानखाने से बाहर निकलने लगा। इससे पहले कि वह शाही मेहमानखाना छोड़ता उसे सुरक्षाकर्मियों ने प्रवेश द्वार पर ही रोकते हुए कहा- आप बाहर नहीं जा सकते। हमें आदेश है कि आपको शाही मेहमानखाने से बाहर नहीं जाने दिया जाए।
यह सुनकर विदेशी पर्यटक चकित रह गया, परंतु बोला कुछ नहीं। उसने सोचा कि शायद उसकी सुरक्षा के कारण सेवकों को यह आदेश दिया गया होगा। यह सोच वह चुपचाप लौट गया। अगले दिन उसे कमरे में बोरियत महसूस होने लगी तो वह फिर से बाहर जाने लगा, परंतु इस बार भी उसे बाहर नहीं जाने दिया गया।
इसी प्रकार एक हफ्ता बीत गया। विदेशी पर्यटक के लिए अंदर सभी सुख–सुविधाएँ मौजूद थीं, परंतु उसे ये सुविधाएँ अच्छी नहीं लग रही थीं। वह स्वयं को बंदी, महसूस कर रहा था। वह न तो ढंग से खाना खाता और न सोता, यहाँ तक कि नाच–गाने से भी अब उसका मन नहीं बहलता
इसी प्रकार लगभग 15-20 दिन बीत गए। एक दिन राजा ने विदेशी पर्यटक को दरबार में बुलाया और उससे पूछा- हे विदेशी मेहमान! कहिए, आप कैसे हैं? आपको किसी बात का कोई कष्ट तो नहीं है। आप हमारी मेहमाननवाजी का आनंद तो ले रहे हैं न!
विदेशी मेहमान गुस्से से बोला- आप मुझसे कैसा सवाल पूछ रहे हैं, क्या आपको मेरी दसा दिखाई नहीं दे रही है ? आपका मेहमान खाना तो मेरे लिए एक कैदखाना बन गया है । मेरी दशा अत्यंत दयनीय हो गई है। मेरा तो यहाँ दम घुट रहा है।
राजा यह सुनकर चकित रह गए । वे बोले- यह आप क्या कह रहे हैं! क्या तेनालीराम ने आपके लिए उचित व्यवस्था नहीं की ?
विदेशी ने कहा- महाराज! व्यवस्था तो अच्छी की है, परंतु मुझे मेहमान खाने से बाहर नहीं जाने दिया जा रहा है। मैं पिछले 15-20 दिनों से वहीं पर बंद हूँ और एक कैदी की तरह महसूस कर रहा हूँ. राजा ने पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्हें तेनालीराम ने ऐसा करने का आदेश दिया है।
राजा ने गुस्से से तेनालीराम की ओर देखा तो राजा के कुछ कहने से पहले ही तेनालीराम बोल पड़ा- महाराज! मैं विदेशी पर्यटक को आजादी का महत्व बता रहा था। उन्होंने ही तो मुझे यह बात सिद्ध करने के लिए कहा था ।
मैंने उन्हें मेहमानखाने से बाहर नहीं जाने देकर उनकी आजादी छीन ली। अब आप देख ही रहे हैं कि आजादी छिनने पर वे कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं। इस प्रकार मैंने अपनी बात को साबित कर दिया।
यह सुनकर राजा हँस पड़े। उनके साथ ही विदेशी मेहमान भी मुस्करा दिया। उसने तेनालीराम की बुद्धिमानी की दाद दी और अपने वादानुसार उसे कीमती हीरों का हार पुरस्कार स्वरूप दिया। तेनालीराम ने पुरस्कार ले लिया और अपने व्यवहार के लिए विदेशी मेहमान से क्षमा माँगी। विदेशी मेहमान ने उसे क्षमा कर दिया और गले से लगा लिया।
shweta soni
25-Jul-2022 11:07 PM
Bahut achhi rachana
Reply
Angela
20-Nov-2021 04:17 PM
Good👍👍👍
Reply
Shalini Sharma
07-Oct-2021 02:30 PM
Nice
Reply